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स्वाधीनता
सर्वत्र पराधीनता के शोषण का था रव
चिंगारी था 1857 का विप्लव ।
गाँधी का भारत आगमन,
फिर सविनय अवज्ञा और असहयोग से
प्रशासनिक व्यवस्था का दमन ।
Dard m kya ashk kya alfaaz
दर्द तो हमें भी हो रहा था उस वक्त, फ़क़त फ़र्क़ सिर्फ़ इतना सा है कि, उन्होंने लफ़्ज़ों से, और हमने आँखों से बहा दिया।
poem by Prateek GoyalHappy Doctors Day
कोई सरहदें नहीं उम्र की, मोहब्बत में हर शख्स जवा हैं
मायूस दिलों का रुख पलट दे, ऐसी मोहब्बत की हवा हैं
हमारी तो मोहब्बत भी हमारे पेशे से हैं जनाब….
जिसकी मोहब्बत हर मर्ज की दवा हैं
Hum doctor hein, Janab
दर्द को तुम्हारे क्रूरता से देखना भी बताते हैं दर्द को तुम्हारे भावुकता से समझना भी बताते हैं हम डॉक्टर हैं जनाब हमें सब सिखाते हैं तुम्हें बेहोश कर के होश में लाना बताते हैं दवाइयों की कड़वाहट में जीवन की मिठास समझाते हैं
poem by Sakshi VermaBharatiya beti ke sapne
नमक खाया जिस देश का अब उसके लिए सपने सजाना चाहती हूं इस जननी मातृभूमि का कर्ज आखिर मैं भी चुकाना चाहती हूं। खेल लिया, कूद लिया लिपटकर इसके सो लिया अब इस धरा पर उद्योग मैं विकसित करना चाहती हूं।
poem by Akshara DoshiWo ladka ab badal gya h
कभी महफिलों में बैठनेवाला आज 9-5 में उलझ गया है हर चीज़ खरीदने वाला, आज हर चीज़ का हिसाब सीख गया है। सिर्फ तुमसे ही प्यार करता हूं कहने वाला, आज मां बाप की पसंद पर मर गया है। कभी एक कॉल पर हर बवाल में आने वाला, आज दोस्तों के घर भूल गया है।
poem by Kuldeep Singh RajpurohitVigneswara
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ: । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
painting by Sakshi KhandareWho am I?
मैं शून्य हूॅं या हूॅं इकाई ? क्या तूफानों से डर जाऊॅंगी मैं या और निखर जाऊॅंगी मैं ? क्या शिखर छू पाऊंगी मैं या नील गगन में उड़ जाऊॅंगी मैं? क्या बीच मझधार में कश्ती डूब जाएगी मेरी या पतवार बन समंदर भी लांघ जाऊॅंगी मैं?
poem by Akanksha Singh GaurYaachak nahi h tu
याचक नहीं है तू,याचना ना कर भाग्यवाद कुछ नही,कर्म प्रखर कर। जीवन रण है चुनौतियां रणभेरिया है। विपदाएं शत्रु सम है, पर तेरे साहस के सम्मुख कठपुतलियां भर हैं। ना ललाट ना हस्थरेखा में,विपदा के स्वतः समाधान का आवाह्न कर,
poem by Vijay Parmar